ललितादित्य मुक्तापीड कश्मीर का वह राजा जिसने अरबी और तुर्क आक्रमणकारियों को छटी की दूध याद दिलाया था। भूला बिसरा भारत का महानायक जिसके बारे में इतिहास नहीं लिखा गया। इनको ‘भारत का सिकंदर’ भी कहा जाता है।
ललितादित्य मुक्तापीडकश्मीर के कर्कोटा वंश के हिन्दू सम्राट थे। कल्हण की ‘राजतरंगिनी’ में आठवीं शाताब्दी के महानायक ललतादित्य मुक्तापीड के पराक्रम का बखान किया गया है। ललितादित्य ने कश्मीर के कर्कॊटा साम्राज्य पर लगभग 36 वर्ष 7 महीने 11 दिन शासन किया था।ललितादित्य के काल में कश्मीर के कर्कॊटा साम्राज्य का विस्तार मध्य एशिया से बंगाल तक फैला हुआ था। उनका साम्राज्य पूर्व में बंगाल तक, दक्षिण में कोंकण तक पश्चिम में तुर्किस्तान और उत्तर-पूर्व में तिब्बत तक फैला हुआ था। कश्मीर में अनेक मंदिर बनाने वाले साम्राट थे ललितादित्य। कश्मीर का मार्ताण्ड मंदिर इन्ही के द्वारा बनाया गया था।
साहस और पराक्रम की प्रतिमूर्ति सम्राट ललितादित्य मुक्तापीड का नाम कश्मीर के इतिहास में सर्वोच्च स्थान पर है। प्रकरसेन नगर उनके साम्रज्य की राजधानी थी। लगातार बिना थके युद्ध में व्यस्त रहना और रणक्षेत्र में अपने अनूठे सैन्य कौशल से विजय प्राप्त करना उनकी बहुत बड़ी उपलब्दी थी। उनके पास विशाल मजबूत और अनुशासित सेना थी जिसके वजह से वे अरबी और तुर्क आक्रमण्कारियों को छटी की दूध याद दिलाते थे।कश्मीर ही नहीं बल्की चीन व तिबतियन इतिहास में भी ललितादित्य के पराक्रम के किस्से दर्ज हैं। कल्हण की राजतरंगिणी में लिखा गया है कि ललितादित्य विजय दिवस को कश्मीर के लोग हर साल मनाते थे। वो ललितादित्य ही थे जिन्होंने अरब आक्रमणकारियों को को सिंध के आगे बढ़ने से रॊक रखा था।ललितादित्य का विजय अभियान रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था। माना जाता है कि ऐसे हि एक अभियान के दौरान उनकी मृत्यू हुई थी। कुछ लोगों का कहना है कि अफघानिस्तान अभियान के दौरान हिमस्खलन के नीचे दब जाने के कारण उनकी मृत्यू हुई थी। वहीं कुछ और लोगों का कहना है कि वे सेना से बिछड़ गये थे और खुद को मुघलों के हाथ लगने से बचाने के लिए उन्होंने खुद आत्म समर्पण कर लिया।